Saturday, January 8, 2011

ख्वाब खला आँखे और मंज़र सब तेरे
है परवत नदिया पेड़ समंदर सब तेरे

हाजिर है सिर ये कटने को बे साख्ता
तीर कमान नश्तर और खंजर सब तेरे

लिख खिजाएँ नाम हम अपने बैठे है
अब्र बहार शबनम है अन्दर सब तेरे

इश्क इबादत खुदा परस्ती के जैसे है
ये काशी काबा मस्जिद मंदिर सब तेरे

तेरे हुस्न के ताब से बच सकता है कौन
नैन नक्श और अंग अंग सुंदर सब तेरे

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