है परवत नदिया पेड़ समंदर सब तेरे
हाजिर है सिर ये कटने को बे साख्ता
तीर कमान नश्तर और खंजर सब तेरे
लिख खिजाएँ नाम हम अपने बैठे है
अब्र बहार शबनम है अन्दर सब तेरे
इश्क इबादत खुदा परस्ती के जैसे है
ये काशी काबा मस्जिद मंदिर सब तेरे
तेरे हुस्न के ताब से बच सकता है कौन
नैन नक्श और अंग अंग सुंदर सब तेरे
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