Sunday, November 22, 2009

मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी हुई
मुश्किलें मेरे चौखट पे आ के दुखी हुई

चलो माना कि जिस्म मेरा मोम था
रूह की तासीर तो पर पत्थर की हुई

उजड़ गए हैं सभी पेड़ इस आंधी में
बची रही वही गरदन जो थी झुकी हुई

जलाये कौन घर अपना रौशनी के लिए
सुई इसी बात पर आके थी रुकी हुई

वो मुन्तजिर है मेरे बिखर जाने को
उसकी आँखों में है तस्वीर मेरी चुभी हुई

बढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
ख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई


manish tiwari
वो फूल है शबनम है या फिर महताब सा है
उसके आँखों में एहसास कुछ शराब सा है

कभी हुस्न हो वो हाजिर तो मैं पढ़ भी लूँ
जिसका चेहरा मोहब्बत की किताब सा है

वो सामने से गुजरे और मुझे होश भी नहीं
ये हकीकत भी क्यूँ लगे कोई ख्वाब सा है

आज देखा जो उनका वो बेनकाब हुस्न
ये नज़ारा किसी प्यासे को सैलाब सा है

वो ग़ज़ल है नज़्म या फिर रुबाई है कोई
रंग-ए बू उस ख़याल का जैसे गुलाब सा है


manish tiwari
जिंदगी में रंज-ओ ग़म का सख्त पहरा है
दिखता तो नहीं मगर ज़ख्म बड़ा गहरा है

न उतार तू कश्ती मेरे दिल के समंदर में
ये पानी बड़ी मुद्दत के बाद जा के ठहरा है

सुनाऊं भी तो किसे दास्ताँ दिल की अपनी
हर एक शख्स इस शहर का यहाँ बहरा है

बुझा सकेगा ना कोई प्यास दिल की फिर से
तेरे जाने से दिल का दरिया अब सहरा है

समझेंगे क्या वो किसी दिल की बर्बादी को
आग देख जो कहते है क्या रंग सुनहरा है

जिसे देख मिलती है दिल को तसल्ली मेरे
उस दिल-ए-नादाँ का लाखों में एक चेहरा है



manish tiwari