Friday, October 1, 2010

अपने ख़्वाबों को जलाऊं तो जलाऊं कैसे
आग जो दिल में सुलगती है बुझाऊं कैसे


जख्म जो भी मिले मुझको, मेरे दिल में है
दिल में गर तू ही नहीं, तो फिर दिखाऊं कैसे


बात जो दिल में है जुबां तक नहीं आ पाती है
दिल की वो सुन न सके तो फिर बताऊँ कैसे


अब तो दिखती नहीं रुत में फसल बहार की
फूल गुलशन से जो मैं चाहूँ तो चुराऊं कैसे


भीड़ रकीबों की है खड़ी हाथ में पत्थर लिए
दिल मेरे तुझको इस दुनिया से बचाऊं कैसे




Manish Tiwari