Monday, July 27, 2009

मिले हैं ग़म कितने ही मुझे जमाने में
भरा है दर्द ही दर्द बेहद मेरे फ़साने में

है जिद कि मेरी सितम तेरे आजमाने की
मजा तुझे जो आता है गर मुझे सताने में

आ कभी बैठ तो फुरसत से मेरे पास में तू
वक्त लगना है जरा ज़ख्म तुझे दिखाने में

है कबूल मुझको दुनिया के इल्जाम सभी
अभी भी बाकी है बहुत जान तेरे दीवाने में

क्यूँ खफा हो के तुम इस तरह सताते हो
तेरा भी कोई दिन गुजरे मुझे मनाने में


Manish Tiwari
वो अपने हुस्न को कैद-ए-नकाब रखते है
साँस में खुशबू तो आँखों में शराब रखते है

कि अदायें उनकी किसी कातिल से कम नही
जुल्फ में बिजली जो होंठो पे गुलाब रखते है

एक औराक-ए-उल्फत भी नही नसीब हमको
सुनते है कि वो पास अपने पूरी किताब रखते है

शाम रंगीन सा हो और पास हो वो माह्पारा
तेरे दीवाने भी कुछ ऐसे हसीं ख्वाब रखते हैं

छू ले गर भूल से तुझको तो पिघल जाये ही
तन में अपने वो क़यामत सा शबाब रखते है

हमने देखा है उसके हुस्न-औ-जमील का असर
अब तो वाइज भी अपनी नीयत ख़राब रखते है

Manish Tiwari