Monday, January 4, 2010

बहुत रोया हूँ शब् भर मैं किसी के देख के आंसू
यही जीवन अगर है तो मरना ही मैं बस चाहूँ

किसी की आँख रोती है किसी का दिल तड़पता है
सभी का जिस्त छलनी है दुआ मांगू तो क्या मांगू

रजामंदी बिना उसके एक पत्ता हिल नही सकता
जिसे ना फ़िक्र बन्दों की उसे कैसे खुदा मानू

नज़र में तीरगी बिखरी नही कोई रौशनी एक भी
उजाले की जरुरत है क्या मैं खुद को जला डालूं

ना जाने शाम से ही क्यों मेरे दिल में है बेचैनी
ये इक घर है उम्मीदों का मैं कोई रंज क्यूँ पालूं


Manish Tiwari