Friday, August 7, 2009

बंद आँखों से तेरा अक्स अब दिखता नहीं
वफ़ा का रंग अब मेरे लहू में टिकता नहीं

वफ़ा की बात न कर दोस्त इस दुनिया में
ये शै है वो जो बाज़ार में अब बिकता नहीं

तुझे जो मेरे ग़मो से गर इत्तेफाक न रहा
मैं भी तेरे लिए ग़ज़ल कोई लिखता नहीं

सुन चलन प्यार का दुनिया में कुछ ऐसा है
वफादारी दुनिया में कोई अब सीखता नहीं

बात जो दिल में थी अब वो जुबां पे लायी है
आग ऐसी मैं दिल में छुपा के रखता नहीं

जिए तो कैसे और किसके लिए जमाने में
शाम को राह मेरा शिद्दत से कोई तकता नहीं

manish tiwari