मैं तो एक बेघर आवारा निकला
प्यासा पंछी और बंजारा निकला
मैं समझता था मसीहा जिसको
शख्स वो दर्द का मारा निकला
आज गर याद जो आई फिर से
आँख से अश्क ये सारा निकला
नाखुदा ने जहाँ डुबोया मुझको
पास ही उसके किनारा निकला
दिल पे इल्जाम वो लगाते क्यूँ है
दिल मेरा पागल बेचारा निकला
जाने वो क्यूँ मुजतरिब हो बैठे
सामने जिक्र जब हमारा निकला
मुजतरिब = परेशान
Manish Tiwari