Sunday, May 24, 2009

मैं तो एक बेघर आवारा निकला
प्यासा पंछी और बंजारा निकला

मैं समझता था मसीहा जिसको
शख्स वो दर्द का मारा निकला

आज गर याद जो आई फिर से
आँख से अश्क ये सारा निकला

नाखुदा ने जहाँ डुबोया मुझको
पास ही उसके किनारा निकला

दिल पे इल्जाम वो लगाते क्यूँ है
दिल मेरा पागल बेचारा निकला

जाने वो क्यूँ मुजतरिब हो बैठे
सामने जिक्र जब हमारा निकला

मुजतरिब = परेशान

Manish Tiwari

Wednesday, May 13, 2009

जब से मिली है तुमसे नज़र हमको मोहब्बत हो गयी है
चैन नही आराम नही बस एक शरारत हो गयी है

रोज यूँ ही मिलते हो मगर, बातें नही होती है कभी
बातें करो और प्यार करो बस एक शिकायत हो गयी है

तुम न मिली जो हमको सनम, दर्द बढेगा इस दिल का
तब हम समझेंगे, हमको सनम हमसे अदावत हो गयी है

भूल गए है क्या है खुदा, और भूल गए है दैर-ओ-हरम
यादों को तेरी समझते है हम, जैसे इबादत हो गयी है


Manish Tiwari
वो रो पड़ा फफक फफक के मेरे जाने के बाद
जिसके आँखों में कभी कतरा-ए-अश्क न था



Manish Tiwari
शब-ए-हिज्र पे जो गुजरी वो दर्द मेरी आँहों में है
एक शिद्दत से तेरा इंतज़ार मेरी इन निगाहों में है

जमाने बीत गए है तुझसे बिछड़ कर जीते हुवे
तेरे होने का एहसास मगर आज भी मेरी बाहों में है

दिए है कितने ही आवाज़ दिल ने तुझे बुलाने को
मैं असर देख तो लूँ जरा कितना मेरी सदाओं में है

हाँ जरुर अब भी तेरे ख़यालों की रहबरी है कि
तेरे बदन की खुशबु मेरे घर की हवाओं में है

वो जो लम्हें कभी साथ गुजारे प्यार में हमने
आज लम्हें वो भटकते हुवे क्यूँ गर्द की राहों में है

मेरा दिल रहा तेरे दर्द का एक उम्र से आशियाँ
क्या अश्क मेरे अब भी तेरी आँख की पनाहों में है


Manish Tiwari