Friday, October 1, 2010

अपने ख़्वाबों को जलाऊं तो जलाऊं कैसे
आग जो दिल में सुलगती है बुझाऊं कैसे


जख्म जो भी मिले मुझको, मेरे दिल में है
दिल में गर तू ही नहीं, तो फिर दिखाऊं कैसे


बात जो दिल में है जुबां तक नहीं आ पाती है
दिल की वो सुन न सके तो फिर बताऊँ कैसे


अब तो दिखती नहीं रुत में फसल बहार की
फूल गुलशन से जो मैं चाहूँ तो चुराऊं कैसे


भीड़ रकीबों की है खड़ी हाथ में पत्थर लिए
दिल मेरे तुझको इस दुनिया से बचाऊं कैसे




Manish Tiwari

11 comments:

  1. bhavon ko bahut sundar roop mein sajaya hai gazal mein...shubh kamnayen..
    http://sharmakailashc.blogspot.com/

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  2. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. हर शेर बहुत खूबसूरत.उम्दा गज़ल.

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  6. बेहतरीन गज़ल! वाह!

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  7. अब तो दिखती नहीं रुत में फसल बहार की
    फूल गुलशन से जो मैं चाहूँ तो चुराऊं कैसे ...

    खूबसूरत ग़ज़ल ... बहुत ही नये अंदाज़ के शेर निकाले हैं ... मज़ा आ गया ...

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  8. बहतरीन गज़ल हर एक शेर बोल रहा है .......अभिवादन

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