Sunday, November 22, 2009

वो फूल है शबनम है या फिर महताब सा है
उसके आँखों में एहसास कुछ शराब सा है

कभी हुस्न हो वो हाजिर तो मैं पढ़ भी लूँ
जिसका चेहरा मोहब्बत की किताब सा है

वो सामने से गुजरे और मुझे होश भी नहीं
ये हकीकत भी क्यूँ लगे कोई ख्वाब सा है

आज देखा जो उनका वो बेनकाब हुस्न
ये नज़ारा किसी प्यासे को सैलाब सा है

वो ग़ज़ल है नज़्म या फिर रुबाई है कोई
रंग-ए बू उस ख़याल का जैसे गुलाब सा है


manish tiwari

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