Sunday, November 22, 2009

जिंदगी में रंज-ओ ग़म का सख्त पहरा है
दिखता तो नहीं मगर ज़ख्म बड़ा गहरा है

न उतार तू कश्ती मेरे दिल के समंदर में
ये पानी बड़ी मुद्दत के बाद जा के ठहरा है

सुनाऊं भी तो किसे दास्ताँ दिल की अपनी
हर एक शख्स इस शहर का यहाँ बहरा है

बुझा सकेगा ना कोई प्यास दिल की फिर से
तेरे जाने से दिल का दरिया अब सहरा है

समझेंगे क्या वो किसी दिल की बर्बादी को
आग देख जो कहते है क्या रंग सुनहरा है

जिसे देख मिलती है दिल को तसल्ली मेरे
उस दिल-ए-नादाँ का लाखों में एक चेहरा है



manish tiwari

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