जिंदगी से भी अब अपनी ना यारी रही
रात गुजरी तो कई पर यूँ ना भारी रही
अश्क आँखों में रहे पलकों में ना आये
रोने वाले क्या खूब तेरी कलाकारी रही
कौन है साथ अपने उम्र भर के लिए
जानने दिल को मुद्दत से बेकरारी रही
हमसे अपने ही खफा खफा रहने लगे
सच बयानी की जो आदत हमारी रही
आदमी अब आदमियत से मिलता नहीं
जाने ये कैसे ज़माने में बिमारी रही
ज़माने में अब भी जो जिन्दा है हम
जिंदगी, हम पर ये तेरी उधारी रही
रात गुजरी तो कई पर यूँ ना भारी रही
अश्क आँखों में रहे पलकों में ना आये
रोने वाले क्या खूब तेरी कलाकारी रही
कौन है साथ अपने उम्र भर के लिए
जानने दिल को मुद्दत से बेकरारी रही
हमसे अपने ही खफा खफा रहने लगे
सच बयानी की जो आदत हमारी रही
आदमी अब आदमियत से मिलता नहीं
जाने ये कैसे ज़माने में बिमारी रही
ज़माने में अब भी जो जिन्दा है हम
जिंदगी, हम पर ये तेरी उधारी रही
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
अच्छी गज़ल ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजिंदगी हम पर ये तेरी उधारी रही ...
ReplyDeleteबनी रहे जिंदगी की उधारी और मेहरबानी ...!
नववर्ष आपके और आपके सभी अपनों के लिए खुशियाँ और शान्ति लेकर आये ऐसी कामना है.
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