Sunday, December 26, 2010

जिंदगी से भी अब अपनी ना यारी रही
रात गुजरी तो कई पर यूँ ना भारी रही

अश्क आँखों में रहे पलकों में ना आये
रोने वाले क्या खूब तेरी कलाकारी रही

कौन है साथ अपने उम्र भर के लिए
जानने दिल को मुद्दत से बेकरारी रही

हमसे अपने ही खफा खफा रहने लगे
सच बयानी की जो आदत हमारी रही

आदमी अब आदमियत से मिलता नहीं
जाने ये कैसे ज़माने में बिमारी रही

ज़माने में अब भी जो जिन्दा है हम
जिंदगी, हम पर ये तेरी उधारी रही

6 comments:

  1. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

    ReplyDelete
  2. जिंदगी हम पर ये तेरी उधारी रही ...
    बनी रहे जिंदगी की उधारी और मेहरबानी ...!

    ReplyDelete
  3. नववर्ष आपके और आपके सभी अपनों के लिए खुशियाँ और शान्ति लेकर आये ऐसी कामना है.

    ReplyDelete