बहुत रोया हूँ शब् भर मैं किसी के देख के आंसू
यही जीवन अगर है तो मरना ही मैं बस चाहूँ
किसी की आँख रोती है किसी का दिल तड़पता है
सभी का जिस्त छलनी है दुआ मांगू तो क्या मांगू
रजामंदी बिना उसके एक पत्ता हिल नही सकता
जिसे ना फ़िक्र बन्दों की उसे कैसे खुदा मानू
नज़र में तीरगी बिखरी नही कोई रौशनी एक भी
उजाले की जरुरत है क्या मैं खुद को जला डालूं
ना जाने शाम से ही क्यों मेरे दिल में है बेचैनी
ये इक घर है उम्मीदों का मैं कोई रंज क्यूँ पालूं
Manish Tiwari
रजामंदी बिना उसके एक पत्ता हिल नही सकता
ReplyDeleteजिसे ना फ़िक्र बन्दों की उसे कैसे खुदा मानू
बहुत अच्छी गज़ल।
Manoj ji Bahut Bahut shukriya hausla afjaai ke liye
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