Monday, July 27, 2009

मिले हैं ग़म कितने ही मुझे जमाने में
भरा है दर्द ही दर्द बेहद मेरे फ़साने में

है जिद कि मेरी सितम तेरे आजमाने की
मजा तुझे जो आता है गर मुझे सताने में

आ कभी बैठ तो फुरसत से मेरे पास में तू
वक्त लगना है जरा ज़ख्म तुझे दिखाने में

है कबूल मुझको दुनिया के इल्जाम सभी
अभी भी बाकी है बहुत जान तेरे दीवाने में

क्यूँ खफा हो के तुम इस तरह सताते हो
तेरा भी कोई दिन गुजरे मुझे मनाने में


Manish Tiwari

3 comments:

  1. बढिया प्रयास कर रहे हैं मनीष जी आप. शुभकामनायें.

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  2. Thanks Sanjeev Ji & Chaturvedi Ji

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