Sunday, May 24, 2009

मैं तो एक बेघर आवारा निकला
प्यासा पंछी और बंजारा निकला

मैं समझता था मसीहा जिसको
शख्स वो दर्द का मारा निकला

आज गर याद जो आई फिर से
आँख से अश्क ये सारा निकला

नाखुदा ने जहाँ डुबोया मुझको
पास ही उसके किनारा निकला

दिल पे इल्जाम वो लगाते क्यूँ है
दिल मेरा पागल बेचारा निकला

जाने वो क्यूँ मुजतरिब हो बैठे
सामने जिक्र जब हमारा निकला

मुजतरिब = परेशान

Manish Tiwari

1 comment:

  1. मैं समझता था मसीहा जिसको
    शख्स वो दर्द का मारा निकला

    जाने वो क्यूँ मुजतरिब हो बैठे
    सामने जिक्र जब हमारा निकला

    नाखुदा ने जहाँ डुबोया मुझको
    पास ही उसके किनारा निकला

    pehla sher baht pasand aaya
    bahut sundar

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