मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी हुई
मुश्किलें मेरे चौखट पे आ के दुखी हुई
चलो माना कि जिस्म मेरा मोम था
रूह की तासीर तो पर पत्थर की हुई
उजड़ गए हैं सभी पेड़ इस आंधी में
बची रही वही गरदन जो थी झुकी हुई
जलाये कौन घर अपना रौशनी के लिए
सुई इसी बात पर आके थी रुकी हुई
वो मुन्तजिर है मेरे बिखर जाने को
उसकी आँखों में है तस्वीर मेरी चुभी हुई
बढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
ख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई
manish tiwari