Wednesday, May 13, 2009

शब-ए-हिज्र पे जो गुजरी वो दर्द मेरी आँहों में है
एक शिद्दत से तेरा इंतज़ार मेरी इन निगाहों में है

जमाने बीत गए है तुझसे बिछड़ कर जीते हुवे
तेरे होने का एहसास मगर आज भी मेरी बाहों में है

दिए है कितने ही आवाज़ दिल ने तुझे बुलाने को
मैं असर देख तो लूँ जरा कितना मेरी सदाओं में है

हाँ जरुर अब भी तेरे ख़यालों की रहबरी है कि
तेरे बदन की खुशबु मेरे घर की हवाओं में है

वो जो लम्हें कभी साथ गुजारे प्यार में हमने
आज लम्हें वो भटकते हुवे क्यूँ गर्द की राहों में है

मेरा दिल रहा तेरे दर्द का एक उम्र से आशियाँ
क्या अश्क मेरे अब भी तेरी आँख की पनाहों में है


Manish Tiwari

No comments:

Post a Comment