Sunday, November 22, 2009

मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी हुई
मुश्किलें मेरे चौखट पे आ के दुखी हुई

चलो माना कि जिस्म मेरा मोम था
रूह की तासीर तो पर पत्थर की हुई

उजड़ गए हैं सभी पेड़ इस आंधी में
बची रही वही गरदन जो थी झुकी हुई

जलाये कौन घर अपना रौशनी के लिए
सुई इसी बात पर आके थी रुकी हुई

वो मुन्तजिर है मेरे बिखर जाने को
उसकी आँखों में है तस्वीर मेरी चुभी हुई

बढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
ख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई


manish tiwari

8 comments:

  1. aapaki yah rachana bahut hi sarahaniy hai, aage bhi likate rahie. shubhakamanaon ke saath.....

    ReplyDelete
  2. वो मुन्तजिर है मेरे बिखर जाने को
    उसकी आँखों में है तस्वीर मेरी चुभी हुई

    बढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
    ख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई
    Bahut sundar vicharo ko apne khoobasooratee se prastut kiyaa hai.
    meree shubhkamnayen hain ki ap aage bhee aise hee achchhee rachanayen likhate rahen.
    Poonam

    ReplyDelete
  3. बहुत ही उत्साहवर्धक गज़ल है भाई

    ReplyDelete
  4. bahut achi gazal lagi apki//har sher kamaal ka hai

    ReplyDelete
  5. अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।

    ReplyDelete
  6. बढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
    ख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई .
    Maneesh jee,
    Bahut hee behatareen gajal.hindi blogjagat men apaka svagat hai.
    Hemantkumar

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुंदर रचना है। ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
    pls visit....
    www.dweepanter.blogspot.com

    ReplyDelete
  8. Thanks to all for their heartly comments.

    ReplyDelete