मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी हुई
मुश्किलें मेरे चौखट पे आ के दुखी हुई
चलो माना कि जिस्म मेरा मोम था
रूह की तासीर तो पर पत्थर की हुई
उजड़ गए हैं सभी पेड़ इस आंधी में
बची रही वही गरदन जो थी झुकी हुई
जलाये कौन घर अपना रौशनी के लिए
सुई इसी बात पर आके थी रुकी हुई
वो मुन्तजिर है मेरे बिखर जाने को
उसकी आँखों में है तस्वीर मेरी चुभी हुई
बढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
ख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई
manish tiwari
aapaki yah rachana bahut hi sarahaniy hai, aage bhi likate rahie. shubhakamanaon ke saath.....
ReplyDeleteवो मुन्तजिर है मेरे बिखर जाने को
ReplyDeleteउसकी आँखों में है तस्वीर मेरी चुभी हुई
बढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
ख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई
Bahut sundar vicharo ko apne khoobasooratee se prastut kiyaa hai.
meree shubhkamnayen hain ki ap aage bhee aise hee achchhee rachanayen likhate rahen.
Poonam
बहुत ही उत्साहवर्धक गज़ल है भाई
ReplyDeletebahut achi gazal lagi apki//har sher kamaal ka hai
ReplyDeleteअच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।
ReplyDeleteबढाए तू जो कदम साथ मेरे कदमों के
ReplyDeleteख़त्म हो जाये सफ़र एक उम्र से रुकी हुई .
Maneesh jee,
Bahut hee behatareen gajal.hindi blogjagat men apaka svagat hai.
Hemantkumar
बहुत ही सुंदर रचना है। ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
ReplyDeletepls visit....
www.dweepanter.blogspot.com
Thanks to all for their heartly comments.
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