अपने ख़्वाबों को जलाऊं तो जलाऊं कैसे
आग जो दिल में सुलगती है बुझाऊं कैसे
जख्म जो भी मिले मुझको, मेरे दिल में है
दिल में गर तू ही नहीं, तो फिर दिखाऊं कैसे
बात जो दिल में है जुबां तक नहीं आ पाती है
दिल की वो सुन न सके तो फिर बताऊँ कैसे
अब तो दिखती नहीं रुत में फसल बहार की
फूल गुलशन से जो मैं चाहूँ तो चुराऊं कैसे
भीड़ रकीबों की है खड़ी हाथ में पत्थर लिए
दिल मेरे तुझको इस दुनिया से बचाऊं कैसे
Manish Tiwari
आग जो दिल में सुलगती है बुझाऊं कैसे
जख्म जो भी मिले मुझको, मेरे दिल में है
दिल में गर तू ही नहीं, तो फिर दिखाऊं कैसे
बात जो दिल में है जुबां तक नहीं आ पाती है
दिल की वो सुन न सके तो फिर बताऊँ कैसे
अब तो दिखती नहीं रुत में फसल बहार की
फूल गुलशन से जो मैं चाहूँ तो चुराऊं कैसे
भीड़ रकीबों की है खड़ी हाथ में पत्थर लिए
दिल मेरे तुझको इस दुनिया से बचाऊं कैसे
Manish Tiwari
kya sher hai bahut khub
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteअब हिंदी ब्लागजगत भी हैकरों की जद में .... निदान सुझाए.....
bhavon ko bahut sundar roop mein sajaya hai gazal mein...shubh kamnayen..
ReplyDeletehttp://sharmakailashc.blogspot.com/
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहर शेर बहुत खूबसूरत.उम्दा गज़ल.
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल! वाह!
ReplyDeleteअब तो दिखती नहीं रुत में फसल बहार की
ReplyDeleteफूल गुलशन से जो मैं चाहूँ तो चुराऊं कैसे ...
खूबसूरत ग़ज़ल ... बहुत ही नये अंदाज़ के शेर निकाले हैं ... मज़ा आ गया ...
बहतरीन गज़ल हर एक शेर बोल रहा है .......अभिवादन
ReplyDeletebahut achchi gazal
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