Sunday, December 26, 2010

जिंदगी से भी अब अपनी ना यारी रही
रात गुजरी तो कई पर यूँ ना भारी रही

अश्क आँखों में रहे पलकों में ना आये
रोने वाले क्या खूब तेरी कलाकारी रही

कौन है साथ अपने उम्र भर के लिए
जानने दिल को मुद्दत से बेकरारी रही

हमसे अपने ही खफा खफा रहने लगे
सच बयानी की जो आदत हमारी रही

आदमी अब आदमियत से मिलता नहीं
जाने ये कैसे ज़माने में बिमारी रही

ज़माने में अब भी जो जिन्दा है हम
जिंदगी, हम पर ये तेरी उधारी रही

Friday, October 1, 2010

अपने ख़्वाबों को जलाऊं तो जलाऊं कैसे
आग जो दिल में सुलगती है बुझाऊं कैसे


जख्म जो भी मिले मुझको, मेरे दिल में है
दिल में गर तू ही नहीं, तो फिर दिखाऊं कैसे


बात जो दिल में है जुबां तक नहीं आ पाती है
दिल की वो सुन न सके तो फिर बताऊँ कैसे


अब तो दिखती नहीं रुत में फसल बहार की
फूल गुलशन से जो मैं चाहूँ तो चुराऊं कैसे


भीड़ रकीबों की है खड़ी हाथ में पत्थर लिए
दिल मेरे तुझको इस दुनिया से बचाऊं कैसे




Manish Tiwari

Sunday, May 30, 2010


न मंजिल न मुश्किल-ए-सफ़र की बात है
अपने अपने ख़याल और नज़र की बात है

अब बच्चों के हाथ मेरे पैरो को छूते नहीं
ये इस दौर-ए-तरक्की की असर की बात है

बाद मुद्दत से तेरी कोई चिट्ठी भी ना आई
तेरा मुझसे ख़फा होने की खबर की बात है

जिंदगी अपनी भी गुजरी थी लज्जत में कभी
तेरा था साथ उस शाम-ओ-सहर की बात है

खिलें है फूल ही फूल गुलशन में जब बहार थी
खिजां में फूल गर खिले ये जिगर की बात है

manish tiwari

Monday, April 12, 2010

रिश्ता अपनों से कुछ ऐसा बनाये रक्खा
ग़मो को अपने कलेजे से लगाये रक्खा

भीड़ हर सिम्त रकीबों की थी कुछ यूँ
आरजू अपनी जीने की घटाए रक्खा

कुछ नज़र मुझको न हुआ दीदार उनका
माँह जुल्फों से जरा ऐसे छुपाये रक्खा

जाने कल हो ख़ुशी या कोई ग़म अपना
आँख में आंसू कुछ अपने बचाए रक्खा

देख अंजाम सच का इस दुनिया में
दिल में दिल की हकीकत दबाये रक्खा

करीब कौन है दिल के और कौन है दूर
मैंने फुरसत में ये हिसाब लगाये रक्खा 

Manish Tiwari

Monday, January 4, 2010

बहुत रोया हूँ शब् भर मैं किसी के देख के आंसू
यही जीवन अगर है तो मरना ही मैं बस चाहूँ

किसी की आँख रोती है किसी का दिल तड़पता है
सभी का जिस्त छलनी है दुआ मांगू तो क्या मांगू

रजामंदी बिना उसके एक पत्ता हिल नही सकता
जिसे ना फ़िक्र बन्दों की उसे कैसे खुदा मानू

नज़र में तीरगी बिखरी नही कोई रौशनी एक भी
उजाले की जरुरत है क्या मैं खुद को जला डालूं

ना जाने शाम से ही क्यों मेरे दिल में है बेचैनी
ये इक घर है उम्मीदों का मैं कोई रंज क्यूँ पालूं


Manish Tiwari