जिंदगी से भी अब अपनी ना यारी रही
रात गुजरी तो कई पर यूँ ना भारी रही
अश्क आँखों में रहे पलकों में ना आये
रोने वाले क्या खूब तेरी कलाकारी रही
कौन है साथ अपने उम्र भर के लिए
जानने दिल को मुद्दत से बेकरारी रही
हमसे अपने ही खफा खफा रहने लगे
सच बयानी की जो आदत हमारी रही
आदमी अब आदमियत से मिलता नहीं
जाने ये कैसे ज़माने में बिमारी रही
ज़माने में अब भी जो जिन्दा है हम
जिंदगी, हम पर ये तेरी उधारी रही
रात गुजरी तो कई पर यूँ ना भारी रही
अश्क आँखों में रहे पलकों में ना आये
रोने वाले क्या खूब तेरी कलाकारी रही
कौन है साथ अपने उम्र भर के लिए
जानने दिल को मुद्दत से बेकरारी रही
हमसे अपने ही खफा खफा रहने लगे
सच बयानी की जो आदत हमारी रही
आदमी अब आदमियत से मिलता नहीं
जाने ये कैसे ज़माने में बिमारी रही
ज़माने में अब भी जो जिन्दा है हम
जिंदगी, हम पर ये तेरी उधारी रही