रिश्ता अपनों से कुछ ऐसा बनाये रक्खा
ग़मो को अपने कलेजे से लगाये रक्खा
भीड़ हर सिम्त रकीबों की थी कुछ यूँ
आरजू अपनी जीने की घटाए रक्खा
कुछ नज़र मुझको न हुआ दीदार उनका
माँह जुल्फों से जरा ऐसे छुपाये रक्खा
जाने कल हो ख़ुशी या कोई ग़म अपना
आँख में आंसू कुछ अपने बचाए रक्खा
देख अंजाम सच का इस दुनिया में
दिल में दिल की हकीकत दबाये रक्खा
करीब कौन है दिल के और कौन है दूर
मैंने फुरसत में ये हिसाब लगाये रक्खा
ग़मो को अपने कलेजे से लगाये रक्खा
भीड़ हर सिम्त रकीबों की थी कुछ यूँ
आरजू अपनी जीने की घटाए रक्खा
कुछ नज़र मुझको न हुआ दीदार उनका
माँह जुल्फों से जरा ऐसे छुपाये रक्खा
जाने कल हो ख़ुशी या कोई ग़म अपना
आँख में आंसू कुछ अपने बचाए रक्खा
देख अंजाम सच का इस दुनिया में
दिल में दिल की हकीकत दबाये रक्खा
करीब कौन है दिल के और कौन है दूर
मैंने फुरसत में ये हिसाब लगाये रक्खा
Manish Tiwari
रिश्ता अपनों से कुछ ऐसा बनाये रक्खा
ReplyDeleteग़मो को अपने कलेजे से लगाये रक्खा
बेहतरीन। लाजवाब।
मनोज जी शुक्रिया !!
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